गुज़र रहा है वक़्त गुज़र रही है ज़िन्दगी
क्यूँ न इन राहों पर एक असर छोड़ चले
पिघल रहे है लम्हात बदल रहे है हालत
क्यूँ न इस ज़माने को बदल दे एक ऐसी खबर छोड़ चले
कोई शक्स कंही रुका सा कोई शक्स कंही थमा सा
क्यूँ न एन बेजान बुतों में एक पैकर छोड़ चले
हर तरफ अँधेरा , ख़ामोशी , तन्हाई , बेरुखी , रुसवाई
क्यूँ न नूरे मुजस्सिम का एक सितायिश्गर छोड़ चले
इन बेईज्ज़त बे परवाह ताजरी-तोश ज़माने में
क्यूँ न कह दे रेत से ये अन्ल्बहर छोड़ चले
हर तरफ धोखा, झूट, फरेब, नाइंसाफी , बेमानी
क्यूँ न बुझती अतिशे-सचाई पर एक शरर छोड़ चले
कैसे लाये वोह अबरू हया दिलके-हर दोशे में
क्यूँ न हर किसी की मोजे शरोदगी पर एक नज़र छोड़ चले
मची है नोच खसोट एक होड़ हर तरफ पाने की
क्यूँ न पाकर अपनी मंजिल को यह लम्बा सफ़र छोड़ चले
करके अपने ख्वाबों को पूरा
क्यूँ न अपनी ताबीर को मु'यासर' छोड़ चले
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Waqt thoda hai pass mere
Waqt thoda hai pass mere,
Par bahut kuch abhi karna baki hai.
Wo zakhm jo apno ne diye,
Unhe abhi bharna baki hai.
Teri dosti ki aadat si pad gayi hai mujhe,
Kuch der tere saath chalna mera baki hai.
Kuch pal ke liye Shamshaan chhod ke kahin mat jana,
Varna ruh kahegi, ruk ja, abhi tere yaar ka jalna baki hai.
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