कभी कभी ये ज़िन्दगी ऐसे हालातों मे फंस जाती हे
चाह कर भी कुछ नहीं कर पाती है
आसूं तो बहते नहीं आँखों से मगर रूह अन्दर ही रोती जाती है
हर पल कुछ कर दिखने की चाह सताती है
सख्त हालातों की हवाँ ताब-औ-तन्वा हिला जाती है
कभी-कभी ये ज़िन्दगी ऐसे हालातों मे फंस जाती है
रहती है दवाम जिबस उस मंजिल को पाने मे
फिर भी 'यासिर' की तरह एक बाज़ी हार जाती है
रह जाती है एक जुस्तुजू सी और एक नया इम्तेहान दे जाती है
जुड़ जाती है सारी कामयाबियां एक ऐसी नाकामयाबी पाती है
कभी-कभी ये ज़िन्दगी ऐसे हालातों मे फंस जाती है
होता नहीं जिस पर यकीं किसीको एक ऐसा मुज़मर खोल जाती है
फिर भी ह़र बात के नाश-औ-नुमा को नहीं जान पाती है
मुश्किल हो जाता है फैसला करना एक ऐसा असबाब बनाती है
नहीं पा सकते है साहिल एक ऐसे मझधार मे फस जाती है
कभी-कभी ये ज़िन्दगी ऐसे हालातों मे फंस जाती है
कोई रास्ता नज़र नहीं आता ह़र मंजिल सियाह हो जाती है
ह़र तालाब-झील मिराज हो जाते है और ज़िंदगी प्यासी रह जाती है
ह़र चोखट पर शोर तो होता है मगर ज़िन्दगी खामोश रह जाती है
कभी-कभी ये ज़िन्दगी ऐसे हालातों मे फंस जाती है
मुन्तज़िर सी एक कशमोकश रहती है हर तस्वीर एक धुंदली परछाई बन जाती है
होसला तो देते है सब मगर ज़िन्दगी मायूस रह जाती है
हर मुमकिन कोशिश करती है अफ्ज़लिना बन्ने के लिए मगर ज़िन्दगी बेबस रह जाती है
कभी-कभी ये ज़िन्दगी ऐसे हालातों मे फंस जाती है
धड़कने रुक जाती है साँस रुक जाती है मगर एक सुनी सी रात कटती नहीं
मज्लिसो मे नाम तो होता है बहुत मगर ज़िन्दगी 'यासिर' की तरह तनहा रह जाती है
बेबस लाचार सी लगने लगती है, ज़िन्दगी हार के कंही रुक जाती है
फिर उट्ठ के चलने की कोशिश तो करती है मगर कुछ सोच के थम जाती है
एक नए खुबसूरत लम्हे के इंतज़ार मे पूरी ज़िन्दगी गुज़र जाती है
कभी-कभी ये ज़िन्दगी ऐसे हालातों मे फंस जाती है
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